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________________ पंचकल्याणक ज्ञानोदय छंद मंगल छिन्न स्वप्न सोलह, श्री मात समुत्रि को आये। अपराजित अनुत्तर तजकर, नगर हस्तिनापुर आये।। फाल्गुन शुक्ला तृतीया को नृपराज सुदर्शन हर्षाये। सुरपति रत्नों को बरसाये, कल्याणक मन को भाये।।1।। ॐ ह्रीं फाल्गुनशुक्लतृतीयायां गर्भमंगलमंडिताय श्रीअरनाथजिनेन्द्राय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा। मगसिर शुक्ला चौदश के दिन, तीर्थंकर जग में आये। इन्द्र हाथ में स्वर्णिम सुंदर, सहस आठ कलशा लाये।। सिद्धक्षेत्र जाने को, पाण्डु शिला पे ले आये। कोटी साढ़े बारह बाजे, तरह-तरह के बजवाये।।2।। ऊँ ह्रीं मार्गशीर्षशुक्लचतुर्दश्यां जन्ममंगलमंडिताय श्रीअरनाथजिनेन्द्राय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा। मगसिर सुदि दशमी को स्वामी, मेघ नाश होते देखा। वस्त्राभूषण तजे तुरत ही, नश्वर जग से मुख मोड़ा।। चक्री पद को त्याग पालकी, वैजयंती में बैठ चले। हजार नृप संग तेला करके, अरहनाथ मुनिनाथ बने।।3।। ऊँ ह्रीं मार्गशीर्षशुक्लदशम्यां तपोमंगलमंडिताय श्रीअरनाथजिनेन्द्राय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा। कार्तिक सुदि बारस को प्रभु ने, जिनवर कीपदवी पायी। छयालीस गुण प्रकट हुए और क्षायिक नव लब्धि पायी।। नाम कर्म की तीर्थंकर शुभ, प्रकृति आज उदय आयी। अरहनाथ के जयकारों से, सारी धरती [जायी।।4।। ऊँ ह्रीं कार्तिकशुक्लद्वादश्यां केवलज्ञानप्राप्ताय श्रीअरनाथजिनेन्द्राय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा। 143
SR No.009250
Book TitleJin Pujan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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