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________________ प्रभु आत्म ध्यान की धूप, सम्यक् ज्ञानमयी। यह राग द्वेष दुःख रूप, होऊँ कर्म जयी।। अरनाथ जिनेश महान, चरण शरण आया। हो स्व-पर भेद विज्ञान, श्रद्धा उर लाया।।7। ॐ ह्रीं श्रीअरनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। फल चरण चढ़ाऊँ नाथ, शिवफल चाह रखू। कर्मों का करके नाश, शिवफल को निरखू।। अरनाथ जिनेश महान, चरण शरण आया। हो स्व-पर भेद विज्ञान, श्रद्धा उर लाया।।18।। ॐ ह्रीं श्रीअरनाथजिनेन्द्राय श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा। पद मद में हो आसक्त, निज पद को भूला। जब हुआ दर्श अनुरक्त, मुक्तिद्वार खुला।। अरनाथ जिनेश महान, चरण शरण आया। हो स्व-पर भेद विज्ञान, श्रद्धा उर लाया॥9॥ ऊँ ह्रीं श्रीअरनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। 142
SR No.009250
Book TitleJin Pujan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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