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________________ टीले पर जब ध्यान लगाया, देवों ने आ बतलाया। पारस-प्रभु की अतिशय प्रतिमा, चमत्कार सुर दिखलाया ॥१४॥ भक्तगणों की भीड़ भावना, धैर्य बाँध भी फूट पड़ा। लगे खोदने टीले को सब, नागों का दल टूट पड़ा ॥१५।। भयाकुलित लख भक्त-गणों को, नभ से मधुर-ध्वनी आयी। घबराओ मत पारस प्रतिमा, शनैः शनैः खोदो भाई ॥१६।। ऐलक जी ने मंत्र शक्ति से, सारे विषधर विदा किये। णमोकार का जाप करा कर, पार्श्व-प्रभू के दर्श लिये ॥१७।। अतिशय दिव्य सुशोभित प्रतिमा, लखते खुशियाँ लहराई। नाच उठे नर-नारि खुशी से, जय-जय ध्वनि भू नभ छाई ॥१८॥ मेला सा लग गया धरा, पारस प्रभु जय-जयकारे। मानव पशुगण की क्या गणना, भक्ती में सुरपति हारे ।।१९।। जब-जब संकट में भक्तों ने, पारस प्रभु पुकारे हैं। जग-जीवन में साथ न कोई, प्रभुवर बने सहारे हैं ।।२०।। बंजारों के बाजारों में, बड़ेगाँव की कीरत थी। लक्ष्मण सेठ बड़े व्यापारी, सेठ रत्न की सीरत थी ॥२१॥ अंग्रेजों ने अपराधी कह, झूठा दाग लगाया था। तोपों से उड़वाने का फिर, निर्दय हुकुम सुनाया था ॥२२॥ दुखी हृदय लक्ष्मण ने आकर, पारस-प्रभु से अर्ज करी । अगर सत्य हूँ हे निर्णायक, करवा दो प्रभु मुझे बरी ॥२३॥ 63
SR No.009247
Book TitleJain Chalisa Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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