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________________ आदि तीर्थंकर ऋषभदेव का, समवशरण मन भाया था। अगणित तीर्थंकर उपदेशी, भव्यों बोध कराया था ॥४॥ चन्द्रप्रभु अरु विमलनाथ का, यश-गौरव भी छाया था। पारसनाथ वीर प्रभुजी का, समोशरण लहराया था ।५।। बड़ागाँव की पावन-भूमी, यह इतिहास पुराना है। भव्यजनों ने करी साधना, मुक्ती का पैमाना है ॥६॥ काल परिणमन के चक्कर में, परिवर्तन बहुबार हुए। राजा नेक शूर-कवि-पण्डित, साधक भी क्रम वार हुए ।।७।। जैन धर्म की ध्वजा धरा पर, आदिकाल से फहरायी। स्याद्वाद की सप्त-तरंगें, जन-मानस में लहरायी ॥८॥ बड़ागाँव जैनों का गढ़ था, देवों गढ़ा कहाता था। पाँचों पाण्डव का भी गहरा, इस भूमी से नाता था ।।९।। पारस-टीला एक यहाँ पर, जन-आदर्श कहाता था। भक्त मुरादें पूरी होती, देवों सम यश पाता था ॥१०॥ टीले की ख्याती वायु सम, दिग्-दिगन्त में लहराई। अगणित चमत्कार अतिशय-युत, सुरगण ने महिमा गाई ॥११॥ शीशराम की सुन्दर धेनु, नित टीले पर आती थी। मौका पाकर दूध झराकर, भक्ति-भाव प्रगटाती थी ॥१२॥ ऐलक जी जब लखा नजारा, कैसी अद्भुत माया है। बिना निकाले दूध झर रहा, क्या देवों की छाया है ॥१३॥ 62
SR No.009247
Book TitleJain Chalisa Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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