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________________ श्री चंद्रप्रभ भगवान की आरती आरति करूँ श्री चंद्रप्रभु की, आरति करूँ प्रभु जी |टेक.।। पहली आरति गर्भकल्याणक - २ जी॥आरति.॥१॥ पन्द्रह मास रतनवृष्टी की, आरति करूँ प्रभु दूजी आरति जन्मोत्सव की - २ मेरू सुदर्शन पर अभिषव की, आरति करूँ प्रभु जी || आरति ।।२।। तीज है निष्क्रमण दिवस की - २ सुर अनुमोदन की, आरति करूँ प्रभु चौथी आरति केवलि प्रभु की - २ द्वादशगणयुत समवसरण की, आरति करूँ प्रभु जी || आरति ॥४॥ पंचम आरति पंचम गति की - २ लौकांतिक जी।आरति ॥३॥ मोक्ष धाम संयुत जिनवर की, आरति करूँ प्रभु जी || आरति ॥५॥ पंचकल्याणकपति प्रभु तुम हो - २ नाश किया संसार भ्रमण को, आरति करूँ प्रभु जी ।।आरति ॥६॥ आरति से भव आरत छुटता-२ करें “चंदनामति” प्रभु वन्दन, आरति करूँ प्रभु जी ।।आरति ॥७॥ 23
SR No.009245
Book TitleJain Arti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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