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________________ गिरनार सिद्धक्षेत्र तीर्थ की आरती चलो सभी मिल करें आरती, सिद्धक्षेत्र गिरनार की । नेमिप्रभु के तीन कल्याणक पावन शुभ धाम की। जय गिरनार गिरी, बोलो जय गिरनार गिर ॥ टेक ॥ जूनागढ़ में नेमिनाथ राजुल को ब्याहन आए थे, पशुओं की चीत्कार सुनी जब, मन ही मन अकुलाए थे, चले विरक्तमना होकर प्रभु, राह गही शिवधाम की। नेमिनाथ.... ॥ जय जय ॥ १॥ राजुल भी पति की अनुगामिनि, बन नेमी की शरण गई, दीक्षा ले प्रभु पादकमल में, तपश्चरण में लीन हुई, समवसरण में गणिनी बन, हुईं पावन पूज्य महान थीं। नेमिनाथ.. ॥जय-जय ॥२॥ टोंक पांचवीं इस पर्वत की, प्रभु को जहाँ निर्वाण हुआ, इसी तीर्थ गिरनार से कितने, मुनियों ने भी मोक्ष लहा, कर उत्कीर्ण चरण सुरपति ने, गाया जय-जयगान भी। नेमिनाथ.... इस पर्वत का वन्दन करने, कुंदकुंददेव गुरु आए थे, बोल पड़ी पाषाण अम्बिका, चमत्कार दरशाए थे, ॥जय-जय ॥३॥ हुई जीत nirgrantha_ धर्म की, ऐसी महिमावान थी । नेमिनाथ.... जिन संस्कृति की अमिट धरोहर, पावन पूज्य तीर्थ अ ॥ जय जय ॥४॥ पना, वर्तमान में हर जैनी की, श्रद्धा का शुभ केन्द्र बना, मुक्तिधाम की आश लिए, 'चंदना' जजूं गिरिराज जी । ॥जय-जय ॥५॥ नोमिनाथ... 133
SR No.009245
Book TitleJain Arti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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