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________________ दीप रतनमय सार, जोत प्रकाशै जगत में । जनम. । ॐ ह्रीं सम्यग् रत्नत्रयाय मोहान्धकारविनाशाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा । धूप सुवास विथार, चन्दन अगर कपूर की 1 जनम-रोग निरवार, सम्यक्-रत्नत्रय भजूँ ॥ ॐ ह्रीं सम्यक् रत्नत्रयाय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा । फल शोभा अधिकार, लौंग छुहारे जायफल । जनम-रोग निरवार, सम्यक्-रत्नत्रय भजूँ ॥ ॐ ह्रीं सम्यक् रत्नत्रयाय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा । आठ दरब निरधार, उत्तम सौं उत्तम लिये | जनम-रोग निरवार, सम्यक् - रत्नत्रय भजूँ ॥ ॐ ह्रीं सम्यक् रत्नत्रयाय अनर्घपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा । सम्यक् दरशन ज्ञान, व्रत शिव-मग तीनों मयी । पार उतारन यान, द्यानत पूजों व्रतसहित ॥ ॐ ह्रीं सम्यक् रत्नत्रयाय पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा । ॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ॥ 716
SR No.009243
Book TitleChovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages798
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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