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________________ रत्नत्रय-पूजा (पं. द्यानतराय) चहुँगति फनि-विष-हरनमणि, दुखपावक-जलधार । शिव-सुख-सुधा-सरोवरी, सम्यक्-त्रयी निहार ॥ ॐ ह्रीं सम्यक् रत्त्रयधर्म ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् । (आह्वाननम्) ॐ ह्रीं सम्यक् रत्त्रयधर्म ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः । (स्थापनम्) ॐ ह्रीं सम्यक् रत्त्रयधर्म ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् । (सन्निधिकरणम्) सोरठा- क्षीरोदधि उनहार, उज्ज्वल जल अति सोहनो। जनम-रोग निरवार, सम्यक्-रत्नत्रय भनूँ ॥ ॐ ह्रीं सम्यक् रत्नत्रयाय जन्मरोगविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा । चन्दन-केसर-गारि, परिमल-महा-सुरंग-मय । जनम-रोग निरवार, सम्यक्-रत्नत्रय भजूं ॥ । ॐ ह्रीं सम्यक् रत्नत्रयाय भवातापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा । तन्दुल अमल चितार, बासमती-सुखदास के। जनम-रोग निरवार, सम्यक्-रत्नत्रय भनँ । ॐ ह्रीं सम्यक् रत्नत्रयाय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा । महकै फूल अपार अलि-गुंजै ज्यों थुति करें। जनम-रोग निरवार, सम्यक्-रत्नत्रय भनूँ ॥ ॐ ह्रीं सम्यक् रत्नत्रयाय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पाणि निर्वपामीति स्वाहा । लाडू बहु विस्तार, चीकन मिष्ट सुगन्धयुत । जनम-रोग निरवार, सम्यक्-रत्नत्रय भनँ । ॐ ह्रीं सम्यक् रत्नत्रयाय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा । 715
SR No.009243
Book TitleChovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages798
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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