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________________ तज्यो तुम प्रानत नाम विमान, भये तिनके घर नंदन आन । तबै सुर इंद्र नियोगनि आय,गिरीन्द करी विधि न्हौन सुजाय ॥३॥ पिता घर सौंप गये निज धाम, कुबेर करै वसु जाम सुकाम । बढ़े जिन दोज मयंक समान, रमैं बहु बालक निर्जर आन ॥४॥ भये जब अष्टम वर्ष कुमार, धरे अणुव्रत महा सुखकार । पिता जब आन करी अरदास, करो तुम ब्याह वरो मम आस ॥ ५ ॥ करी तब नाहिं रहे जग चंद, किये तुम काम कषाय जु मंद । चढ़े गजराज कुमारन संग, सुदेखत गंगतनी सुतरंग ॥ ६ ॥ लख्यो इक रंक करै तपघोर, चहूँ दिशि अगनि बलै अति जोर । कहै जिननाथ अरे सुन भ्रात, करै बहुजीवन की मत घात ॥ ७ ॥ भयो तब कोप कहै कित जीव, जले तब नाग दिखाय सजीव । लख्यो यह कारण भावन भाय, नये दिव ब्रह्म-ऋषी सुर आय ॥ ८ ॥ तबहिं सुर चार प्रकार नियोग, धरी शिविका निजकंध मनोग। कियो वन माँहिं निवास जिनंद, धरे व्रत चारित आनंदकंद ॥९॥ ___ गहें तहँ अष्टम के उपवास, गये धनदत्त तने जु अवास। दियो पयदान महासुखकार, भई पन वृष्टि तहाँ तिह वार ॥१०॥ गये तब कानन मॉहिं दयाल, धर्यो तुम योग सबहि अघ टाल । तबै वह धूम सुकेतु अयान, भयो कमठाचर को सुर आन ॥११ ॥ करै नभ गौन लखे तुम धीर, जु पूरब बैर विचार गहीर । कियो उपसर्ग भयानक घोर, चली बहु तीक्षण पवन झकोर ॥१२॥ रह्यो दशहूँ दिश में तम छाय, लगी बहुअग्नि लखी नहिं जाय। सुरुण्डन के बिन मुण्ड दिखाय, पड़ें जल मूसलधार अथाय ॥ १३ ॥ ___ तबै पद्मावति कंत धनिंद, नये जुग आय तहाँ जिनचंद। भग्यो तब रंक सु देखत हाल, लह्यो तब केवलज्ञान विशाल ॥१४ ॥ दियो उपदेश महा हितकार, सुभव्यन बोध सम्मेद पधार । सुवर्णभद्र जू कूट प्रसिद्ध, वरी शिवनारि लही वसुरिद्ध ॥१५॥ 631
SR No.009243
Book TitleChovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages798
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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