SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 630
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कलि पौष एकादशि आई, तब बारह भावन भाई। अपने कर लोंच सु कीना, हम पूर्जे चरन जजीना ॥ ॐ ह्रीं पौषकृष्णैकादश्यां तपोमंगलमण्डिताय श्रीपाश्वनाथजिनेन्द्राय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा । कलि चैत चतुर्थी आई, प्रभु केवल ज्ञान उपाई। तब प्रभु उपदेश जु कीना,भवि जीवन को सुख दीना ॥ ॐ ह्रीं चैत्रकृष्णचतुर्थ्यां केवलज्ञानमण्डिताय श्रीपाश्वनाथजिनेन्द्राय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा । सित सावन सातैं आई, शिवनारि वरी जिनराई। सम्मेदाचल हरि माना, हम पूर्ग मोक्ष कल्याना ॥ ॐ ह्रीं श्रावणशुक्लसप्तम्यां मोक्षमंगलप्राप्ताय श्रीपाश्वनाथजिनेन्द्राय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। जयमाला पारसनाथ जिनेन्द्र तने वच, पौनभखी जरते सुन पाये। को सरधान लह्यो पद आन, भये पद्मावति शेष कहाये ॥ नाम प्रताप टरें संताप सु, भव्यन को शिवशर्म दिखाये । हो अश्वसेन के नंद भले, गुण गावत हैं तुमरे हरषाये ॥ दोहा केकी -कंठ समान छवि, वपु उतंग नव हाथ । लक्षण उरग निहार पग, वंदौं पारसनाथ ॥ पद्धरि छन्द रची नगरी षट् मास अगार, बने चहुँ गोपुर शोभ अपार । सु कोट तनी रचना छवि देत, कंगूरन पै लहकैं बहुकेत ॥१॥ बनारस की रचना जु अपार, करी बहु भॉति धनेश तैयार। तहाँ विश्वसेन नरेन्द्र उदार, करें सुख वाम सु दे पटनार ॥२॥ 630
SR No.009243
Book TitleChovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages798
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy