SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 595
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नर्क सातवाँ मिला उसे पाये दुःख अति तैंतीस सागर।14। सप्तम भव मध्यम ग्रैवेयक में जा तुम अहमिन्द्र हुए। अष्टम भव में नगर अयोध्या के राजा आनन्द हुए।15। भव-भोगों से ही विरक्त तुमने मुनिपद स्वीकार किया। गोत्र तीर्थंकर प्रभु बाँधा तप-संयम साकार किया।16। सिंह हुआ वह आया तुमको क्रोधित होकर खा डाला। प्राणत-स्वर्ग गये उसको पाँचवे नर्क विधि ने डाला।17। दशवें भव तुम पार्श्वकुँवर वन तपसी महीपाल नाना। अग्नि जला तप करता था उपदेश न एक प्रभो माना।18। ज्वाला में जलते दिखलाये नाग-नागिनी अर्ध जले। सुन उपदेश हुए मर कर पद्मावती और धरणेन्द्र भले।19। खोटा तप कर कमठ जीव संवर ज्योतिषी हुआ जाकर। आग बैर की बुझी नहीं उपसर्ग किये फिर से आकर।20। किये उपद्रव घोर कमठ ने प्रभु के ध्यान विदारण को। पद्मावती-धरणेन्द्र शीघ्र आये उपसर्ग-निवारण को।21। फण-मण्डप पर प्रभु को ले धरणेन्द्र मुदित अपने मन में। पद्यादेवी छत्र तानकर खड़ी हो गई उस वन में।221 शुभ भावों से इन दोनों ने पुण्य-उपार्जन किया अपार। लीन रहे प्रभु आत्म-ध्यान में गूंजी नभ में जय-जयकार।23। सात दिवस तक किया उपद्रव अग्नि ज्वाला जल वर्षा की। भीषण झंझावात चला पाषाणों की वर्षा की।24। श्रेणी क्षपक चढ़े प्रभु तत्क्षण कर्म घातिया नाश किया। मोह-शत्रु पर विजय प्राप्त कर केवलज्ञान-प्रकाश लिया।25। तत्क्षण ही उपसर्ग विलय हो गया हुआ सुर-दुन्दुभि नाद। समवशरण की रचना सुन्दर जगती में छया आह्लाद।26। खिरी दिव्यध्वनि भव्य-देशना अहिक्षेत्र में पहली बार। दश गणधर में मुख्य स्वयंभू गणधर ने झेली श्रुत धार।27। 595
SR No.009243
Book TitleChovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages798
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy