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________________ मुक्ती पाने हेतु आपने, शुक्लध्यान अवलंब किया। नष्ट किया सब कर्म तुम्ही तब, मोक्षपुरी में वास किया।। अन्तरिक्ष श्री पार्श्वजिनेश्वर, प्रतिमा सुन्दर बनवायी। प्राण-प्रतिष्ठा कर प्रतिमा की, नेमगिरि पर पधरायी।। चन्द्रगुप्त मुनि साथ पधारे, भद्रबाहु श्री स्वामीजी। सूरीमंत्र उद्धार किया जब, हुये गगन तब अधर तुम्हीं।। दिन में सूर्यकिरण प्रभु के, चरणों का प्रक्षाल करें। स्पर्श करे तव चरण-युगल का, रोज-रोज संचार करें।। पूर्ण चन्द्रमा अर्ध रात वह भी जा तव चरण पड़े। नागराज भी यहां पधारे, दर्शन लेकर निकल पड़े।। तन-मन से दीन-दुःखी जन सब, तुमको आकर ध्याते हैं। रोग-शोक परिहार करे सब, मनवांछित फल पाते हैं।। विश्वजगत के इतिहास में, नई अनोखी बात यहाँ। कहीं न जो देखी है वो, श्री अन्तरिक्ष जिनराज यहाँ।। महाराष्ट्र के जिंतूर ग्राम में, कोस एक वह दूर रहे। सह्याद्रि की निसर्ग गोद में, नेमगिरि सुक्षेत्र बसे।। मुगलों का था राज्य यहाँ जब, मिट्टी से था दबा दिया। वीरा, नेमा, अंतु शंघ्वी ने नेमगिरी उद्धार किया।। इतिहास में प्रथम बार ही, चातुर्मास का योग मिला। प्रज्ञाश्रमण के हृदय कमल में, भक्ति सुमन का फूल खिला। चालीसा तव पाठ पढ़े और जाप जपे जो भी तेरा। भवोदधि से पार उतरकर, पाते मोक्ष परम प्यारा।। बृहस्पति भी तुमरी महिमा, कहने में न समर्थ हुआ। भक्ति-भाव से तव गुण वर्णं बस एक यही अर्थ हुआ। ऊँ ह्रीं श्रीकलिकुंडदण्डय-श्रीअंतरिक्ष-पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय जयमाला-पूर्णाध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।। 583
SR No.009243
Book TitleChovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages798
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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