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________________ ॥ दिव्य-परिपुष्पांजलिं क्षिपेत्॥ ॐ ह्रीं श्री कलिकुंडदण्डाय श्रीअंतरिक्षपार्श्वनाथ ह्रीं नमः । (इस मंत्र का 108 या 27 या कम से 9 बार जाप अवश्य कीजिए ।) पंचकल्याणक (दोहा) अन्तरिक्ष जिनदेव की, पढ़ता हूँ जयमाल | गुण वरणँ श्री पार्श्व के, नत मस्तक हो भाल। अन्तरिक्ष श्री पार्श्वजिनेश्वर नाम सुमंगल प्यारा है। दुनिया में रहते हो प्रभुवर, फिर दुनिया से क्यों न्यारा है।। महावीर के पहले से तुम, आन यहीं विराजे हो । इस हेतु श्री पारस स्वामी, घर-घर हर दिल साजे हो । महिमा अगम्य तुम्हारी देवा, जन-जन ने ये जानी है। पूजत सौख्य मिले सबही, ये बात नहीं पुरानी है। माता वामा विश्वसेन राया, काशी नगरी धन्य किया। नाग युगल को णमोकार के पाठ से तुमने तार दिया।। तीस वर्ष की भरी जवानी, विषय-भोग को छोड़ चले। ले दिगंबरी दीक्षा वन में, शिवमग पग बढ़ा चले ॥ वीतराग निर्गथ-दिगम्बर, मुद्रा सबको भाती है। कमठों जैसे पापी जनको, बिलकुल भी नहीं सुहाती है। देव नरेन्द्र किन्नर, सुर-नर, विद्याधर भी आते हैं। जीवन सफल बनाने हेतु, निशदिन तुमको ध्याते हैं।। मनहर तेरी प्रतिमा लखकर, तुम जैसा होना चाहूँ। त्याग-तपस्या-नियम साधकर, कब तुमसा मैं बन जाऊँ।। वर्षों की कठिन तपस्या से, आत्मज्ञान को प्राप्त किया। भव्यजनों के हित के हेतु मोक्षमार्ग उपदेश दिया।। सौ वर्ष की पूर्ण आयु तक, दिव्य-देशना रोज दिया। सम्मेदशिखर तीर्थ पर जाकर, सम्यक् योग-निरोध किया। 582
SR No.009243
Book TitleChovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages798
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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