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________________ जयमाला नहिं दोष अठारह है तुममें निकलंक जगत उपकारी है। हे नाथ! त्रिलोकपति भगवन् तू अनंत-चतुष्टय धारी है।। शुक्ल-ध्यान से तुमने स्वामि घनघाति-कर्म को दूर किया। केवलज्ञान दिवाकर से है अखिल विश्व को पूर दिया।। तेरी अमृत-वाणी को पी करके बने अमर प्राणी। तेरी महिमा कहते-कहते, थक जाते हैं मुनिजन ज्ञानी।।1। मैं कौन बाग की हूँ मूली तू चिंतामणि पारस सिंधु है। क्षुल्लक गागन हूँ मैं भगवन् तू सिद्ध गुणों का सिंधु है।। हरित वर्ण तन पावन तेरा मरकत मणि सम सुन्दर है। ध्यान-धुरंधर आतम-स्वरूप तू कर्म चूरने वज्जर है।।2।। तुमने देखा था एक तपस्वी पंचाग्नि तप तपता था। नाग-नागनी उसमें जलते उनका हृदय तड़पता था।। हे बाल ब्रह्मचारी तुमने उन मरतों को नवकार दिया। मरकर नाग-नागिनी ने भी देव-लोक को पाय लिया।।3।। तुमने कहा उस तपसी से जीवों की हिंसा मत ठानो। जटा तेरी है बढ़ी हुई त्रस जीव मरे उसमें जानो।। छोड़ शीघ्र इस पाप-पंथ को जैन धर्म स्वीकार करो। कर्मों को चकचूर करो तुम स्वर्ग-मोक्ष को शीघ्र वरो।।4।। हिंसा में धर्म किसी ने कहीं न देखा और सुना होगा। हिंसा या पाप से वर्ग मिले फिर नर्क कौन जाता होगा। इस भाँति उसको समझाकर भगवान वहां से जाते है।। अपने आतममें मग्न हुए निज आतम-गुण को ध्याते हैं।।5।। ___ कमठ दुष्ट ने पूर्व वैर से तुम पर भारी वर्षा की। किन्तु तुमने उस दुष्ट दैत्य की तनित न मनमें परवा की।। वह दैत्य हृदय में दग्ध हुआ ज्यों विरही दिलमें जलता है। क्रोध में आकर किया उपद्रव ध्यान से तू ना डिगता है।।6।। धरणेंद्र-पद्मावती वे नाग-नागिनी देवलोकसे हैं आये। फण को तुझपर धारण करके मनमें अति वे हर्षाये।। 567
SR No.009243
Book TitleChovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages798
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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