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________________ वसुविध विधि से रंजित हो मैं, नहीं निरंजन बन पाया। नित्य निरंजन बनने हेतु, ध्यान-धूप शुभ ले आया।। भविजन के जिननाथ तुम्ही हो, नेमिनाथ जिन नमता हूँ। वीतराग-वश मन-वच-तन से, तव गुण-स्तव नित करता हूँ।। 7। ॐ ह्रीं श्री नेमगिरीगुफास्थित-नेमिनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।7। सुख-दुःख झूठे फल को पाकर, निजको भव में भटकाया। तुम सम जिनपद पाने जिनवर, विनय-महाफल ले आया। भविजन के जिननाथ तुम्ही हो, नेमिनाथ जिन नमता हूँ। वीतराग-वश मन-वच-तन से, तव गुण-स्तव नित करता हूँ।। 8।। ऊँ ह्रीं श्री नेमगिरीगुफास्थित-नेमिनाथजिनेन्द्राय मोक्षफल-प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।8। हे जिन! निज को अध्य बनाकर, तुम्हे समर्पित करता हूँ। तब चरणन में अर्पण कर मैं, दारुण भव-दुःख हरता हूँ।। भविजन के जिननाथ तुम्ही हो, नेमिनाथ जिन नमता हूँ। वीतराग-वश मन-वच-तन से, तव गुण-स्तव नित करता हूँ।। 9।। ऊँ ह्रीं श्री नेमगिरीगुफास्थित-नेमिनाथजिनेन्द्राय अनध्यपद-प्राप्तये अयं निर्वपामीति स्वाहा। स्तुति मोहजाल को तोड़कर चढ़ गये तुम गिरनार। करुणा कर करुणा किये निज पर मुनिव्रत धार।। परम तपस्वी तप किये, बनकर मुनि निष्काम। कर्म नाशकर शिव गये नेमि जिनेश्वर नाम।। तुम सा ध्यानी कौन है, कौन किये है ध्यान।। तुम-सम दानी कौन है, कौन किये है दान।। ज्ञानी ध्यानी तुम रहे, दिये अभय का दान। तुम-सम करना ध्यान है, बल दो हे भगवान।। 545
SR No.009243
Book TitleChovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages798
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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