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________________ चैत्र शुक्ल की पूर्णिमा उपज्यो केवलज्ञान। भव सागर से पार हो, दियो भव्य जन ज्ञान।। श्री पदमप्रभ जिनराज जी मोहे राखो हो शरना। माघ कृष्णा छठ में प्रभो, आये गर्भ मंझार।। ॐ ह्रीं चैत्रशुक्ला-पूर्णिमायां केवलज्ञान-प्राप्ताय श्रीपद्मप्रभजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।4। फागुन वदी चतुर्थी को, मोक्ष गये भगवान। इन्द्र आय पूजा करी, मैं पूजौं धर ध्यान।। श्री पदमप्रभ जिनराज जी मोहे राखो हो शरना। माघ कृष्णा छठ में प्रभो, आये गर्भ मंझार।। ऊँ ह्रीं फाल्गुनकृष्णा-चतुर्थ्यां मोक्षमंगल-प्राप्ताय श्रीपद्मप्रभजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।5। जयमाला (दोहा) चौतीसों अतिशय सहित, बाड़ा के भगवान। जयमाला श्री पदम की, गाऊं सुखद महान।।1।। (पद्धरि छन्द) जय पद्मनाथ परमात्मदेव, सुर जिनकी करते चरन-सेव। जय पद्म पद्मप्रभ तन रसाल, जय-जय करते मुनि मन विशाल।2। कौशाम्बी में तुम जन्म लीन, बाड़ा में बहुत अतिशय करीन। इक जाट पुत्र ने जमीं खोद, पाया तुमको होकर समोद।3। सुनकर हर्षित हो भविक वृन्द, पूजा आकर की दुःख निकन्द। करते दुखियों का दुःख दूर, हो नष्ट प्रेत बाधा जरूर।4। डाकिन शाकिन सब होय चूर्ण, अन्धे हो जाते नेत्र पूर्ण। श्रीपाल सेठ अंजन सुचोर, तारे तुमने उनको विभोर।5। अरु नकुल सर्प सीता समेत, तारे तुमने निज भक्त हेत। हे संकट मोचन भक्तपाल, हमको भी तारो गुण विशाल।6। विनती करता हूं बार बार, होवे मेरा दुख क्षार-क्षार। 481
SR No.009243
Book TitleChovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages798
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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