SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 429
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तपकल्याणक-प्राप्ताय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। ऋषभदेव अरिहन्त हुए हैं, फाल्गुन कृष्णा ग्यारस को। चार घातिया कर्म हने हैं, अनन्त-चतुष्टय पाने को।। स्वर्गपुरी के इन्द्रादिक ने समवशरण की रचना की। ध्वनि खिरी तब समवशरण में ऋषभदेव भगवान की।। ऊँ ह्रीं फाल्गुनकृष्णा-एकादश्यां श्री 1008 गुण-संयुक्त साँगानेरवाले बाबा श्रीआदिनाथजिनेन्द्राय ज्ञानकल्याणक-प्राप्ताय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। चौदह दिन जब शेष आयु के, योगनाश को गमन किया। कैलाशगिरि पर ध्यान लगाकर, आठ कर्म का नाश किया।। माघ कृष्ण की चौदस तिथि को, मोक्षपुरी को गमन किया। इन्द्रादिक देवों ने आकर, सिद्धक्षेत्र को नमन किया।। ॐ ह्रीं माघकृष्णा-चतुर्दश्यां श्री 1008 गुण-संयुक्त साँगानेरवाले बाबा श्रीआदिनाथजिनेन्द्राय मोक्षकल्याणक-प्राप्ताय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। महाअर्घ्य वैशाखशुक्ल की तीज तिथि को सुरगण साँगावति आये। विक्रम संवत सात शतक में, गजरथ पर जब प्रभु आये।। आदिब्रह्मा ऋषभदेव हो, महिमा अतिशयकारी है। भूगर्भ जिनालय रत्नमयी है, महिमा उसकी न्यारी है।। पूज्य सुधासागर गुरुवर ने, तेरी महिमा बता दई। सारे जग के भव्य जनों ने, तेरी शक्ति जान लई।। धन्य हुआ मैं पूजा करके, पूज्य परम-पद पाना है। कर्म काटकर सिद्ध बनूं मैं, मोक्षपुरी को जाना है।। आधि-व्याधि सब संकट मेरे, पूजन से नश जाते हैं। भव्य भक्त अब अर्घ सजाकर, तेरे चरण चढ़ाते हैं।। ॐ ह्रीं श्रीं महाअतिशयकारी साँगानेरवाले बाबा श्रीआदिनाथजिनेन्द्राय महाअर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। 429
SR No.009243
Book TitleChovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages798
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy