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________________ कबहुँक नंदनवन विर्षे प्रभु, कबहुँक वनगृह माँहि हो । म्हारी दीनतणी सुन वीनती॥ प्रभु यह विधिकाल गमाय मैं, फिर माला गई मुरझाय हो। म्हारी दीनतणी सुन वीनती॥ देव थिती सब घट गई, फिर उपज्यो सोच अपार हो । सोच करत तन खिर पड्यो, फि र उपज्यो गरभ में जाय हो । म्हारी दीनतणी सुन वीनती॥ प्रभु गर्भतणा दुःख अब कहूँ, जठै सकुड़ाई की ठौर हो। हलन चलन नहिं कर सक्यो, जठै सघन कीच घनघोर हो।। म्हारी दीनतणी सुन वीनती॥ माता खावै चरपरो, फिर लागै तन संताप हो। प्रभु जो जननी तातो भखै, फिर उपजै तन संताप हो ॥ म्हारी दीनतणी सुन वीनती॥ औंधे मुख झुल्यो रह्यो, फेर निकसन कौन उपाय हो । कठिन-कठिन कर नीसरो, जैसे निसरै जंत्री में तार हो ॥ म्हारी दीनतणी सुन वीनती॥ प्रभु फिर निकसत ही धरत्यां पड्यो, फिर लागी भूख अपार हो । रोय-रोय बिलख्यो घणों, दुख वेदन को नहिं पार हो ॥ म्हारी दीनतणी सुन वीनती॥ दोहा प्रभु दुःख मेटन समरथ धनी यातें लागूं तिहारे पाय हो। सेवक अरज करै प्रभु मोकूँ, भवदधि पार उतार हो ॥ म्हारी दीनतणी सुन वीनती॥ श्रीजी की महिमा अगम है, कोई न पावै पार । मैं मति अल्प अज्ञान हूँ, कौन करै विस्तार ॥ ॐ ह्रीं श्रीआदिनाथजिनेन्द्राय अनर्घपदप्राप्तये महाघु निर्वपामीति स्वाहा । विनती ऋषभ जिनेश की, जो पढ़सी मन ल्याय । सुरगों में संशय नहीं, निहचै शिवपुर जाय ॥ ॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ॥ 400
SR No.009243
Book TitleChovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages798
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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