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________________ सुमन गुथित माला, पंचधा वर्ण वाला। लखत लगें नीके, घ्राण होवे खुशाला।। लयमन भरि पूजों, पाद श्रेयाँस के रे, नसत असत कर्म, ज्ञान वर्णादि मेरे।। ओं ह्रीं श्री श्रेयांसनाथ जिनेन्द्राय कामवाणविनाशनाय पुष्पम् निर्वपामीति स्वाहा। सुरभि घृत पचाई, शुद्ध नैवेद्य ताजी। कनक जडित थारा, माँह नीके सुसाजी ।। लयमन भरि पूजों, पाद श्रेयाँस के रे, नसत असत कर्म, ज्ञान वर्णादि मेरे।। ओं ह्रीं श्री श्रेयांसनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यम् निर्वपामीति स्वाहा। परम बरत बाती, धूम जामें न होई। तिमिर कटत जासों, दीप ऐसी संजोई ।। लयमन भरि पूजों, पाद श्रेयाँस के रे, नसत असत कर्म, ज्ञान वर्णादि मेरे।। ओं ह्रीं श्री श्रेयांसनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपम् निर्वपामीति स्वाहा। जलत ज्वलन मांही, धूप गन्धे छटासों। उड़त मगन भौंरा, पाय धूआं घटासो।। लयमन भरि पूजों, पाद श्रेयाँस के रे, नसत असत कर्म, ज्ञान वर्णादि मेरे।। ओं ह्रीं श्री श्रेयांसनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपम् निर्वपामीति स्वाहा। मधुर माधुर पाके, आम्र निम्बू नरंगी। रसचलित सो नाहीं, कीजिये जानि अंगी।। लयमन भरि पूजों, पाद श्रेयाँस के रे, नसत असत कर्म, ज्ञान वर्णादि मेरे।। ओं ह्रीं श्री श्रेयांसनाथजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलम् निर्वपामीति स्वाहा। अब करियत अध्य, मेल्हि के द्रव्य आठो। मन वचन तन लीन्हें, हाथ उच्चारि पाठों।। लयमन भरि पूजों, पाद श्रेयाँस के रे, नसत असत कर्म, ज्ञान वर्णादि मेरे।। ओं ह्रीं श्री श्रेयांसनाथजिनेन्द्राय अनध्य पद प्राप्तये अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। 320
SR No.009243
Book TitleChovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages798
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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