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________________ वध जीव भयो न कितौ सुनिये, न अहार कह्यो मन में गुनिये ||6|| उपसर्ग न केवल-ज्ञान भये, शुभ आनन सोहत चार लये। सब ईश्वरता विद्यापन की, कहुँ छांह न लेश परे तन की॥7॥ करजा चिकुरा नहिं वृद्धि कदा, पलकें न लगे कहुँ नेक सदा। इमि केवलज्ञान तने दश हैं, अमरान किये शुभ चौदह हैं|| 8 ॥ शुभवाण खरे अर्ध मागधिया, तजि देहें सबै तहँ वैर जिया । फल फूलत वृक्ष छहों ऋतु के, जन पावत चैन सवै हित के ॥9॥ चले मंद बयारि सुगन्ध मई, शुभ आरसि जेम सुभूमि भई । और गन्ध मिली जलकी बरषा, तहँ होत लखो जिय मो हरषा । 10 ॥ बिन कंटक आदिक भूमि कही, कमलों परि है गति देव सही। फल भार नमें सब धान्य जहाँ, मलवर्जित कीन्ह अकाश महा॥11॥ सुर चारि प्रकार आहवान करें, अति ही चित में सुनन्द धरें। अरिशासनचक्र अगारि चले, वसु मंगल द्रव्य सुहात भले।।12।। प्रभु के अतिशय वर देव कृता, अपनी मति माफिक में उकता। कहिये प्रतिहाज नाथ तने, सुनतेहि नसें जगफँद घने।।13।। नहि राखत शोक अशोक दली, तसु ऊपर गुंजत भूरि अली। वरषै सुमना मुख ऊपर को, अरु हेठ कहो सो रहै तरको ।।14।। ध्वनि दिव्य निरझरि नीसरिता, इकयोजन घोष मिता धरिता । चतुषष्टि कहे वन चामर ही, लिय ढोरत ठाडि मुखावर ही ।। 15।। छवि आसन की गिरि में सुथरी, द्युतिमंडल सो भव सप्त धरी । सुरदुंदुभि बारह कोटि बजे, अधकोटि अधिक्क महा गरजें।।16।। त्रय छत्र क्षपाकर ज्यों उकता, उडु से मनु सेव्य रहे मुकता । प्रतिहारज अष्ट विभूति रही, तिहि धारि भये अरिहन्त सही ॥17॥ करि चारिय घातिय घात जबै, लहि नन्त चतुष्टय पट्ट तबै। दर्शन अरु ज्ञान सुसौख्य बलं, इन चारहु ते तुव देव अलं।।18।। व्यवहार कहे गुण छालिस जे, निहचै नयतें गुण नन्त सचे। 290
SR No.009243
Book TitleChovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages798
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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