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________________ जान सुदी वैसाख, नौमी दिन तपग्रहण किया। छांडि सकल मन भाख, जजों अघ्य ले तिन चरण ।। ओं ह्रीं वैशाखशुक्लनवम्यां तपकल्याणक प्राप्ताय श्री सुमतिनाथजिनेन्द्राय अघ्यम् निर्वपामीति स्वाहा । केवल ज्ञान प्रकाश, एकादशि सुदि चैत की । इन्द्र रहत पद पास, मैं पूजत शुभ अध्य सों || ओं ह्रीं चैत्रशुक्लैकादश्यां ज्ञानकल्याणक प्राप्ताय श्री सुमतिनाथजिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा । चैत सुदी गिन लेहु, एकादशि सम्मेद तै। जगत जलांजलि दे, परम निरंजन होत ।। ओं ह्रीं चैत्रशुक्लैकादश्याँ निर्वाणकल्याणक प्राप्ताय श्री सुमतिनाथजिनेन्द्राय अध्यम्। जयमाल - त्रिभंगी छन्द जय दुरमति खंडन विपतिविहंडन, पातिकदण्डन सुमतिपती। जय शिवसुखमंडन भवभ्रमछंडन, जय परमेश्वर परम- जती॥1॥ जयतुममुखचन्दा लखि भविवृन्दा, लहत अनन्दा विगिरिमिता । जयगुणरत्नाकर शचिपतिचाकर, रहत निशाकर गुणकविता॥2॥ तोटक छन्द नहि स्वेद नहीं मल रंच कहो, शुभ शोणित क्षीरसमान लहो । वज्रवृषभनाराच संहननम्, सम चौसंस्थान भलो गननम् ॥3॥ अतिसुन्दर रूप सुहावत है, सहजै तनगन्ध सुआवत है। दससौ अरु आठ सुलक्षणते, सब विघ्न नसें तुव अक्षन ते ॥4॥ वीर रमिता, प्रियवैन भले निकसें उचिता । जनमें तब के दश जे अतिशय, अब केवल के कहिये अतिशय ॥5॥ बसै कही कोस सुभिक्ष महा चलिवो शुभ अम्बरको सुमहा 289
SR No.009243
Book TitleChovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages798
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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