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________________ धूप संग हुताश जारे, धूम्र बृज दिग में हवै। दिग्पाल चिन्तै मनो छितिधर, नील से आवें इहै।। सो मलय परिमल घ्राण रज्जन, सुरनिकों अति प्रेय ही। श्रीवीरनाथ जिनेन्द्र के जुग, चरण चरचूँ ध्येय ही।।7।। ॐ ह्रीं श्रीमहावीरजिनेन्द्राय अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। शुभ फलोत्कर पक्क मधुरे, स्वर्ण से मनकू हरें। आमोद पावन पुंज करहूँ, मनोवांछित फल करें।। भरि थाल कनकमय अमर तरु के, लखे चखि] प्रेय ही। श्रीवीरनाथ जिनेन्द्र के जुग, चरण चरचूँ ध्येय ही।।8।। ऊँ ह्रीं श्रीमहावीरजिनेन्द्राय मोक्षफल-प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा। नीर गन्ध इत्यादि द्रव्य ले, कमलपद सनमति तने। जो जजै ध्यानै बन्दि सत4, ठानि उत्सव अति घने।। सुर होय चक्री काम हलधर, तीर्थ पद को श्रेय ही। सुख रामचन्द लहन्त शिव के, अर्घ करि प्रभु ध्येय ही।।9।। ऊँ ह्रीं श्रीमहावीरजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। पंचकल्याणक (दोहा) ___षष्ठी शुक्ल अषाढ़ ही, पुष्पोत्तर” देव। चय त्रिशला-उर अवतरे, जजूं भक्ति धरि एव।1। ऊँ ह्रीं आषाढशुक्ला-षष्ट्यां गर्भमंगल-मंडिताय श्रीमहावीरजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। चैत्र शुकल तेरसि सुरां, कीनों जन्म-कल्यान। छीर-उदधिक् मेरुपै, मैं जजहूँ धरि ध्यान।2। ऊँ ह्रीं चैत्रशुक्ला-त्रयोदश्यां जन्ममंगल-मंडिताय श्रीमहावीरजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। 260
SR No.009243
Book TitleChovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages798
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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