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________________ वीतरागको पूजा क्यो ? वस्तुतः अनेकान्त, भाव-अभाव नित्य-अनित्य भेद-अभेद आदि एकान्तनयोके विरोधको मिटाकर, वस्तुतत्त्वकी सम्यकव्यवस्था करनेवाला है इमीसे लोक-व्यवहारका सम्यक् प्रवर्तक है-बिना अनेकान्तका आश्रय लिये लोकका व्यवहार ठीक बनता ही नही, और न परस्परका वैर-विरोध ही मिट सकता है। टमीलिये अनेकान्तको पस्मागमका बीज और लोकका अद्वितीय गुरु कहा गया है --वह मवोके लिये मन्मार्ग-प्रदर्शक है * । जैनी नीतिका भी वही मूलाधार है। जो लोग अनेकान्तका सचमुच आश्रय लेते है वे कभी म्व-पर-वैरी नहीं होते, उनसे पाप नहीं बनते, उन्हें आपदाएं नहीं सताती, और वे लोकमे मदा ही उन्नत उदार नथा जयशील बने रहने है। वीतरागकी पूजा क्यों ? जिमकी पूजा की जाती है वह यदि उस पूजासे प्रसन्न होता है, और प्रसन्नताक फलस्वरूप पूजा करनेवालेका कोई काम बना देना अथवा सुधार देना है ना लोकमें उसकी पूजा मार्थक समझी जाती है। और पूजाम किमीका प्रसन्न होना भी तभी कहा जा सकता है जब या तो वह उसके बिना अप्रसन्न रहता हो, या उससे उसकी प्रसन्नताम कुछ वृद्धि होनी हो अथवा उससे उसका कोई दूसरे प्रकारका लाभ पहुँचना हंः, परन्तु वीतरागदेवक विषय में यह सब कुछ भी नहीं कहा जा सकता-व न किसीपर प्रसन्न हात है, न अप्रसन्न और न किसी प्रकारकी कोई इच्छा ही रखते है, जिसकी पूति-अर्निपर उनकी प्रसन्नता-अप्रसन्नता निर्भर * नीति-विरोध-: वर्मी दोकव्यवहारवतक सम्यक् । परमागममा बीउ भुवनैकगुम् जपत्यनेकान्तः ॥
SR No.009240
Book TitleSamantbhadra Vichar Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year1954
Total Pages40
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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