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________________ धवला पुस्तक 3 81 अन्य अर्थ प्रधान बहुव्रीहि समास है। उत्तर पदार्थ प्रधान तत्पुरुष समास है। अव्ययीभाव समास में पूर्व पदार्थ प्रधान है। द्वन्द्व समास की प्रत्येक पद में प्रधानता रहती है।।7।। अनन्त के भेद णाम ठवणा दवियं सस्सद गणनापदेसियमणतं। एगो उभयादेसो वित्थारो सव्व भावो य।।8।। नामानन्त, स्थापनानन्त, द्रव्यानन्त, शाश्वतानन्त, गणनानन्त,अप्रदेशिकानन्त, एकानन्त, उभयानन्त, विस्तारानन्त, सर्वानन्त और भावानन्त इस प्रकार अनन्त के ग्यारह भेद हैं।।8।। आगम का स्वरूप पूर्वापरविरुद्धादेयं पेतो दोषसंहते:। द्योतकः सर्वभावानामाप्तव्याहतिरागमः।।9।। पूर्वापर विरुद्धादि दोषों के समूह से रहित और संपूर्ण पदार्थों के द्योतक आप्त वचन को आगम कहते हैं।।9।। आप्त का स्वरूप आगमो ह्याप्तवचनमाप्त दोषक्षयं विदुः। त्यक्तदोषोऽनृतं वाक्यं न ब्रूयाद्धेत्वसंभवात्।।10।। आप्त के वचन को आगम जानना चाहिये और जिसने जन्म, जरा आदि अठारह दोषों का नाश कर दिया है, उसे आप्त जानना चाहिये। इसप्रकार जो त्यक्त दोष होता है, वह असत्य वचन नहीं बोलता है, क्योंकि उसके असत्य वचन बोलने का कोई कारण ही संभव नहीं है।।10।
SR No.009235
Book TitleDhavala Uddharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year2016
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size524 KB
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