SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 84
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धवला पुस्तक 3 79 जीव द्रव्य का स्वरूप अरसमरूवमगंधं अव्वत्तं चेदणागुणमसद्दं । जाण अलिंगग्गहणं जीवमणिद्दिट्ठसंठाणं ।।1।। जो रस रहित है, रूप रहित है, गन्ध रहित है, अव्यक्त अर्थात् स्पर्श गुण की व्यक्ति से रहित है, चेतना गुण युक्त है, शब्द पर्याय से रहित है, जिसका लिंग (इन्द्रिय) के द्वारा ग्रहण नहीं होता है और जिसका संस्थान अनिर्दिष्ट है अर्थात् सब संस्थानों से रहित जिसका स्वभाव है उसे जीव द्रव्य जानो।।1। षड्विध पुद्गल द्रव्य पुढवी जलं च छाया चउरिंदियविसय-कम्म- परमाणू । छव्विहमेयं भणियं पोग्गलदव्वं जिणवरेहिं ।। 2 ।। जिनेन्द्रदेव ने पृथिवी, जल, छाया, नेत्र, इन्द्रिय के अतिरिक्त शेष चार इन्द्रियों के विषय, कर्म और परमाणु, इसप्रकार पुद्गल द्रव्य छह प्रकार का कहा है।।2।। द्रव्य का लक्षण नयो पनये कान्ताना' त्रिकालानां समुच्चयः। अविभ्राड्भावसम्बन्धो द्रव्यमेकमनेकधा ।।3।। जो नैगमादि नय और उनकी शाखा, उपशाखा रूप उपनयों के विषयभूत त्रिकालवर्ती पर्यायों का अभिन्न सम्बन्ध रूप समुदाय है, उसे द्रव्य कहते हैं। वह द्रव्य कथंचित् एकरूप और कथंचित् अनेकरूप
SR No.009235
Book TitleDhavala Uddharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year2016
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size524 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy