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________________ धवला पुस्तक 2 71 बीस प्ररूपणा गुण जीवा पज्जत्ती पाणा सण्णा य मग्गणाओ य । उवजोगो वि य कमसो वीसं तु परूवणा भणिया ।। 222 ॥ गुणस्थान, जीवसमास, पर्याप्ति, प्राण, संज्ञा, चौदह मार्गणाएँ और उपयोग, इसप्रकार क्रम से बीस प्ररूपणाएँ कही गई हैं । । 222 || संज्ञा का स्वरूप एवं भेद इह जाहि वाहिया वि य, जीवा पार्वति दारुणं दुक्खं । सेवंता वि य उभये, ताओ चत्तारि सण्णाओ।।223॥ इस लोक में जिनसे बाधित होकर तथा जिनका सेवन करते हुए ये जीव दोनों लोकों में दारुण दुःख को प्राप्त होते हैं, उन्हें संज्ञा कहते हैं। उसके चार भेद हैं- आहार संज्ञा, भय संज्ञा, मैथुन संज्ञा और परिग्रह संज्ञा ।।223॥ आहार संज्ञा आहारदंसणेण य, तस्सुवजोगेण ओमको ठाए । सादिदरुदीरणाए, हवदि हु आहारसण्णा हु ।।224।। आहार के देखने से, उसका उपयोग होने से, पेट के खाली होने से तथा असातावेदनीय कर्म की उदीरणा होने से जीव के नियम से आहार संज्ञा होती है।।224।
SR No.009235
Book TitleDhavala Uddharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year2016
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size524 KB
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