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________________ धवला उद्धरण 68 सासादन सम्यग्दृष्टि जानना चाहिए। यह गुणस्थान सादि और पारिणामिक भाव वाला है।।217।। सम्यग्मिथ्यादृष्टि सद्दहणासदहणं जस्स य जीवस्स होइ तच्चेसु। विरदाविरदेण समो सम्माम्मिच्छो त्ति णादव्वो।।218।। जिस जीव के जीवादिक तत्त्वों में श्रद्धान और अश्रद्धान रूप भाव है, उसे विरताविरत के समान सम्यग्मिथ्यादृष्टि जानना चाहिए।।218।। ण वि जायइ णि मरइ ण वि सुद्धो ण वि य कम्म-उम्मुक्को। चउगइमज्ज्झत्थे वुण रागाइ-समण्णिो जीवो।।219।। वह न जन्म लेता है, न मरता है, न शुद्ध होता है और न कर्म से उन्मुक्त होता है, किन्तु वह रागादि से युक्त होकर चारों गतियों में पाया जाता है।।219।। मिथ्यात्वी जीव तिण्णि जणा एक्कक्क दोहो णेच्छति ते तिवग्गा य। एक्को तिण्णि ण इच्छइ सत्त वि पावति मिच्छत्त।।220।। ऐसे तीन जन जो सम्यग्दर्शन, ज्ञान और चारित्र इन तीनों में से किसी एक-एक को (मोक्षमार्ग) स्वीकार नहीं करते, दूसरे ऐसे तीन जन जो इन तीनों में से दो-दो को (मोक्षमार्ग) स्वीकार नहीं करते तथा कोई ऐसा भी जीव हो जो तीनों को (मोक्षमार्ग) स्वीकार नहीं करता, ये सातों जीव मिथ्यात्वी हैं।।220।।
SR No.009235
Book TitleDhavala Uddharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year2016
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size524 KB
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