SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 70
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धवला पुस्तक 1 65 पद्म लेश्या चागी भद्दो चोक्खो उज्जुव-कम्मो य खमइ बहुअंपि। साहु-गुरु-पूजण-रदो लक्खणमेदं तु पम्मस्स।।207।। जो त्यागी है, भद्रपरिणामी है, निर्मल है, निरन्तर कार्य करने में उद्यत रहता है, जो अनेक प्रकार के कष्टप्रद और अनिष्ट उपसर्गों को क्षमा कर देता है और साधु तथा गुरुजनों की पूजा में रत रहता है, ये सब पद्म लेश्या वाले के लक्षण हैं।।207।। शुक्ल लेश्या ण उ कुणइ पक्खवायं ण वि य णिदाणं समो य सव्वेसु। णत्थि य राय-बोसा हो वि य सुक्क-लेस्सस्स।।208।। जो पक्षपात नहीं करता है, निदान नहीं बांधता है, सबके साथ समान व्यवहार करता है, इष्ट और अनिष्ट पदार्थों के विषय में राग और द्वेष से रहित है तथा स्त्री, पुत्र और मित्र आदि में स्नेह रहित है, ये सब शुक्ल लेश्या वाले के लक्षण हैं।।208।। लेश्या रहित जीव किण्हादि-लेस्स-रहिदा संसार-विणिग्गया अणंत-सुहा। सिद्धि-पुरं संपत्ता अलेस्सिया ते मुणेयव्वा।।209।। जो कृष्णादि लेश्याओं से रहित हैं, पंच परिवर्तनरूप संसार से पार हो गये हैं, जो अतीन्द्रिय और अनन्त सुख को प्राप्त हैं और जो आत्मोपलब्धिरूप सिद्धिपुरी को प्राप्त हो गये हैं, उन्हें लेश्यारहित जानना चाहिये।।209।।
SR No.009235
Book TitleDhavala Uddharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year2016
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size524 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy