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________________ धवला उद्धरण 62 चक्षु एवं अचक्षु दर्शन चक्खूण जं पयासदि दिस्सदि तं चक्खु-दसण बेति। सेसिंदिय-प्पयासो णादव्वो सो अचक्खु त्ति।।195।। जो चक्षु इन्द्रिय के द्वारा प्रकाशित होता है अथवा दिखाई देता है उसे चक्षु दर्शन कहते हैं तथा शेष इन्द्रिय और मन से जो प्रतिभास होता है, उसे अचक्षु दर्शन कहते हैं।।195।। अवधि दर्शन परमाणु-आदियाइं अंतिम-खधं ति मुत्ति-दव्वाइं। तं ओधि-दसणं पुण जं पस्सई ताई पच्चक्खं ।।196।। परमाणु से आदि लेकर अन्तिम स्कन्ध पर्यन्त मूर्त पदार्थों को जो प्रत्यक्ष देखता है, उसे अवधि दर्शन कहते हैं।।196।। केवल दर्शन बहुविह बहुप्पायारा उज्जोवा परिमियम्हि खेत्तम्हि। लोगालोग अतिमिरो जो केवलदसणुज्जोवो।।197।। अपने-अपने अनेक प्रकार के भेदों से युक्त बहुत प्रकार के प्रकाश इस परिमित क्षेत्र में ही पाये जाते हैं, परंतु जो केवल दर्शन रूपी उद्योत है वह लोक और अलोक को भी तिमिर रहित कर देता है।।197।। ज्ञान की सर्वगतता आदा णाण-पमाणं गाणं णेय-प्पमाणमुद्दिळं। णेयं लोआलोअं तम्हा णाणं तु सव्व-गयं।।198।। आत्मा ज्ञान प्रमाण है, ज्ञान ज्ञेय प्रमाण है, ज्ञेय लोकालोक प्रमाण है, इसलिये ज्ञान सर्वगत कहा है।।198।।
SR No.009235
Book TitleDhavala Uddharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year2016
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size524 KB
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