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________________ धवला उद्धरण 54 छह माह प्रमाण आयुकर्म के शेष रहने पर जिस जीव को केवलज्ञान उत्पन्न हुआ है वह समुद्घात को करके ही मुक्त होता है। शेष जीव समुद्घात करते भी हैं और नहीं भी करते हैं।।167।। जेसि आउ-समाई णामा गोदाणि वेयणीयं च। ते अकय-समुग्घाया वच्चंतियरे समुग्घाए-1168।। जिन जीवों के नाम, गोत्र और वेदनीयकर्म की स्थिति आयुकर्म के समान होती है वे समुद्घात नहीं करके ही मुक्ति को प्राप्त होते हैं। दूसरे जीव समुद्घात करके ही मुक्त होते हैं।।168।। आयुबंध हो जाने पर सम्यग्दर्शन एवं व्रतग्रहण का विधान चत्तारि वि छेत्ताई आउग बंघेण होइ सम्मत्तं। अणवद-महव्वदाई ण लहद देवायगं मोत्त॥16911 चारों गति सम्बन्धी आयुकर्म के बन्ध हो जाने पर भी सम्यग्दर्शन उत्पन्न हो सकता है, परंतु देवायु के बन्ध को छोड़कर शेष तीन आयुकर्म के बन्ध होने पर यह जीव अणुव्रत और महाव्रत को ग्रहण नहीं करता है।।169।। स्त्री का स्वरूप छादेदि सयं दोसेण यदो छादइ परं हि दोसेण। छादणसीला जम्हा तम्हा सा वणिया इत्थी।।170।। जो मिथ्यादर्शन, अज्ञान और असंयम आदि दोषों से अपने को आच्छादित करती है और मधुर संभाषण, कटाक्ष-विक्षेप आदि के द्वारा जो दसरे परुषों को भी अब्रह्म आदि दोषों से आच्छादित करती है. उसको आच्छादनशील होने के कारण स्त्री कहा है।।170।।
SR No.009235
Book TitleDhavala Uddharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year2016
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size524 KB
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