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________________ धवला पुस्तक 1 37 होता है, अथवा विपरीत श्रद्धान होता है, उसको मिथ्यात्व कहते हैं। उसके संशयित, अभिगृहीत और अनभिगृहीत इस प्रकार तीन भेद हैं।।107॥ सासादन गुणस्थान सम्मत्त-रयण-पव्वय सिहरादो मिच्छ-भूमि-समभिमुहो। णासिय-सम्मत्तो सो सासण-णामो मुणेयव्वो।।108।। सम्यग्दर्शन रूपी रत्नगिरि के शिखर से गिरकर जो जीव मिथ्यात्व रूपी भूमि के अभिमुख है। अतएव जिसका सम्यग्दर्शन नष्ट हो चुका है, परंतु मिथ्यादर्शन की प्राप्ति नहीं हुई है, उसे सासन अर्थात् सासादन गुणस्थानवर्ती समझना चाहिये।।108।। मिश्र गुणस्थान दहि-गुडमिव वामिस्सं पुहभावं व कारिदुं सक्कं। एवं मिस्सयभावो सम्मामिच्छो त्ति णायव्वो।।109।। जिस प्रकार दही और गुड़ को मिला देने पर उनको अलग नहीं अनुभव किया जा सकता है, किन्तु मिले हुए उन दोनों का रस मिश्रभाव को प्राप्त हो जाता है, उसी प्रकार एक ही काल में सम्यक्त्व और मिथ्यात्व मिले हुए परिणामों को मिश्र गुणस्थान कहते हैं, ऐसा समझना चाहिये।।109।। सम्माइट्ठी जीवो उवइट्ठ पवयणं तु सद्दहदि। सद्दहदि असब्भावं अजाणमाणो गुरु-णियोगा।।110।। सम्यग्दृष्टि जीव जिनेन्द्र भगवान् के द्वारा उपदिष्ट प्रवचन का तो श्रद्धान करता ही है, किन्तु किसी तत्त्व को नहीं जानता हुआ गुरु के उपदेश से विपरीत अर्थ का भी श्रद्धान कर लेता है।।110।।
SR No.009235
Book TitleDhavala Uddharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year2016
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size524 KB
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