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________________ धवला उद्धरण 28 अट्ठासी-अहियारेस चउण्हमहियारणमत्थणिद्दे सो। पढमो अबंधयाणं विदियो तेरासियाण बोद्धवो।।76।। इस सूत्र नामक अधिकार के अठासी अधिकारों में से चार अधिकारों का अर्थ निर्देश मिलता है। उनमें पहला अधिकार अबन्धकों का, दूसरा त्रैराशिक वादियों का, तीसरा नियतिवाद का समझना चाहिये तथा चौथा अधिकार स्वसमय का प्ररूपक है।।76।। द्वादश पुराण बारसविहं पुराणं जगदिट्ठ जिणवरेहि सव्वेहि। तं सव्वं वणणेदि हु जिणवंसे रायवंसे य।।77।। पढमो अरहताणं विदियो पुण चक्करवट्टि-वंसो दु। विज्जहराणं तदिया च उत्थयो वासुदेवाण।।78।। चारण-वंसो तह पंचमो दु छट्ठो य पण्ण-समणाणं। सत्तमओ कुरुवंसो अट्ठमओ तह य हरिवंसो।।79।। णवमो य इक्खुयाणं दसमो वि य कासियाण बोद्धव्वो। वाईणेक्कारसमो बारसमो णाह-वंसो दु।।80।। जिनेन्द्र देव ने जगत् में बारह प्रकार के पुराणों का उपदेश दिया है। वे समस्त पुराण जिनवंश और राजवंशों का वर्णन करते हैं। पहला अरिहंत अर्थात् तीर्थंकरों का, दूसरा चक्रवर्तियों का, तीसरा विद्याधरों का, चौथा नारायण-प्रतिनारायणों का, पाँचवां चारणों का, छठवां प्रज्ञाश्रमणों का वंश है तथा सातवां कुरुवंश, आठवां हरिवंश, नववां इक्ष्वाकुवंश, दशवा काश्यपवंश, ग्यारहवां वादियों का वंश और बारहवां नाथवंश है।।77-800
SR No.009235
Book TitleDhavala Uddharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year2016
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size524 KB
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