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________________ धवला उद्धरण वाला तथा अधिक आरम्भ को करने वाला होता है।।2-31 258 कापोत लेश्या का लक्षण रूसइ दिइ अण्णे दूसइ बहुसो य सोय - भयबहुलो । असुअइ परिहवइ परं पसंसइ य अप्पयं बहुसो ।।4।। ण य पत्तियइ परं सो अप्पाणं पिव परे वि मण्णंतो । तूसइ अहित्थवंतो ण य जाणइ हाणि - वड्ढीयो ।। 5 ।। मरणं पत्थेइ रणे देह सुबहुअं पि थुव्वमाणो दु । ण गणइ कज्जमकज्जं काऊए पेरियो जीवो ।।6।। यह जीव कापोत लेश्या से प्रेरित होकर रुष्ट होता है, दूसरों की निन्दा करता है, उन्हें बहुत प्रकार से दोष लगाता है, प्रचुर शोक व भय से संयुक्त होता है, दूसरों से असूया (ईर्ष्या) करता है, पर का तिरस्कार करता है, अपनी अनेक प्रकार से प्रशंसा करता है, वह अपने ही समान दूसरों को भी समझता हुआ अन्य का कभी विश्वास नहीं करता है, अपनी प्रशंसा करने वालों से संतुष्ट होता है, हानि-लाभ को नहीं जानता है, युद्ध में मरण की प्रार्थना करता है, दूसरों के द्वारा प्रशंसित होकर उन्हें बहुत सा पारितोषिक देता है तथा कर्त्तव्य और अकर्त्तव्य के विवेक से रहित होता है।।4-6।। पीत/ तेज लेश्या का लक्षण जाणइ कज्जमकज्जं सेयमसेय च सव्वसमपासी । दय - दाणरओ मउओ तेऊए कीरए जीवो || 7 || तेज लेश्या जीव को कर्त्तव्य-अकर्त्तव्य तथा सेव्य असेव्य का जानकार, समस्त जीवों को समान समझने वाला, दया- दान में लवलीन और सरल करती है। 7 ॥
SR No.009235
Book TitleDhavala Uddharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year2016
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size524 KB
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