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________________ धवला पुस्तक 14 241 ध्रुवशून्यवर्गणा, बादरनिगोदवर्गणा, शून्यवर्गणा, सूक्ष्मनिगोदवर्गणा, शून्यवर्गणा और महास्कन्धवर्गणा।।7-8।। वर्गणाओं का परिमाण अणु संखा संखगुणा परित्तवग्गणमसंखलोगगुणं। गुणगारो पंचण्णं अग्गहणाणं अभव्वणंतगुणो।।9।। इनमें अणुवर्गणा एक है। संख्याताणवर्गणा संख्यातगणी है। असंख्याताणुवर्गणा असंख्यातलोकगुणी है। अनन्ताणुवर्गणा सहित पाँच अग्राह्यवर्गणाओं का गुणकार अभव्यों से अनन्तगुणा है।।9।। आहारतेजभासा मणेण कम्मेण वग्गणाण भवे। उक्कस्सस्स विसेसो अभव्वजीवेहि अधियो दु।।10।। आहारवर्गणा, तैजसवर्गणा, भाषावर्गणा, मनोवर्गणा और कार्मणवर्गणा में अभव्यों से अनन्तगुणे जीवों का भाग देने पर जो लब्ध आवे उतना जघन्य से उत्कृष्ट लाने के लिए विशेष का प्रमाण है।।।10।। वर्गणाओं का गुणकार धुवसंतसांतराणं धुवसुण्णस्स य हवेज्ज गुणगारो। जीवेहि अणंतगुणो जहणियादो दु उक्कस्से।।11।। ध्रुवस्कन्धवर्गणा, सान्तरनिरन्तरवर्गणा और प्रथम ध्रुवशून्यवर्गणा में अपने जघन्य से उत्कष्ट का प्रमाण लाने के लिए गणकार का प्रमाण सब जीवों से अनन्तगुणा है।।।11।। पल्लासंखोज्जदिमो भागो पत्ते यदेहगुणगारो। सुण्णे अणंता लोगा थूलणिगोदे पुणो वोच्छं।।12।। प्रत्येकशरीरवर्गणा का गुणकार पल्य का असंख्यातवां भाग है। दूसरी ध्रुवशून्यवर्गणा में गुणकार अनन्त लोक है। स्थूलनिगोद वर्गणा का
SR No.009235
Book TitleDhavala Uddharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year2016
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size524 KB
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