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________________ धवला पुस्तक 1 19 और जिसे सोलह हजार राजा नमस्कार करते हैं उसे तीन खण्ड पृथिवी का अधिपति अर्थात् नारायण कहते हैं।।42।। चक्रवर्ती का लक्षण षट्खण्डभरनाथं द्वात्रिंशद्धरणिपतिसहसाणाम्। दिव्यमनुष्यं विदुरिह भोगागारं सुचक्रधरम्।।43।। इस लोक में बत्तीस हजार राजाओं से सेवित, नव निधि आदि से प्राप्त होने वाले भोगों के भण्डार, उत्तम चक्र-रत्न को धारण करने वाले और भरत क्षेत्र के छह खण्ड के अधिपति को दिव्य मनुष्य अर्थात् चक्रवर्ती समझना चाहिये।।43।। तीर्थकर का लक्षण सकलभुवनेकनाथस्तीर्थकरो वर्ण्यते मुनिवरिष्ठः। विधुधवलचामराणां तस्य स्याद्वै चतुःषष्टिः।।44।। जिनके ऊपर चन्द्रमा के समान धवल चौंसठ चँवर ढरते हैं, ऐसे सकल भुवन के अद्वितीय स्वामी को श्रेष्ठ मुनि तीर्थंकर कहते हैं।।44।। अभ्युदय सुख तित्थयर-गणहरत्तं तहेद देविद-चक्कवद्रितं। अणिरिहमेवमाई अब्भुदय-सुहं वियाणाहि।।45।। इस लोक में तीर्थकरपना, गणधरपना, देवेन्द्रपना, चक्रवर्तिपना और इसीप्रकार के अन्य अर्ह अर्थात् पूज्य पदों को अभ्युदय सुख समझना चाहिये।।45।।
SR No.009235
Book TitleDhavala Uddharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year2016
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size524 KB
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