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________________ धवला उद्धरण 230 नियम से प्रथम आकाश प्रदेश में अवस्थान करते हैं तथा दूसरे आकाश प्रदेश में अनन्तगुणे हीन पुद्गल अवस्थान करते हैं।।2।। भासागदसमसेडि सई जदि सुणदि मिस्सयं सुणदि। उस्सेडि पुण सई सुणेदि णियमा पराघादे।।3।। ___ भाषागत सम श्रेणिरूप शब्द को यदि सुनता है तो मिश्र को ही सुनता है और उच्छ्रेणि को प्राप्त हुए शब्द को यदि सुनता है तो नियम से पराघात के द्वारा सुनता है।3।। असंज्ञी पंचेन्द्रियों तक के इन्द्रिय विषय क्षेत्र चत्तारि धणुसयाई चउसट्ठि सयं च तह य धणहाणं। फासे रसे य गंधे दुगुणा दुगुणा असण्णि ति।।4।। उणतीसजोयणसया चउवण्णा तह य होंति णायव्वा। चउरिदियस्स णियमा चक्खप्फासो सणियमेण।।5।। उणसट्ठिजोयणसया अट्ठ य तह जोयणा मुणेयव्वा। पंचिंदियसण्णीणं चक्खुप्फासो सुणियमेण।।6।। अठेव धणुसहस्सा विसओ सोदस्स तह असण्णिस्स। इय एदे णायव्वा पोग्गलपरिणामजोएण।।7।। स्पर्शन, रसना और घ्राण इन्द्रियाँ क्रम से चार सौ धनुष, चौसठ धनष और सौधनष के स्पर्श.रस और गन्ध को जानती हैं। आगे असंजी तक इन इन्द्रियों का विषय दूना-दूना है। चतुरिन्द्रिय जीव के चक्षु इन्द्रिय का विषय नियम से उनतीस सौ चौवन योजन है। पंचेन्द्रिय असंज्ञी जीव के चक्षु इन्द्रिय का विषय उनसठ सौ आठ योजन जानना चाहिये। असंज्ञी जीव श्रोत्र इन्द्रिय का विषय आठ हजार धनुष है। यह सब विषय पुद्गलों की पर्यायों के निमित्त से जानना चाहिये।।4-7।।
SR No.009235
Book TitleDhavala Uddharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year2016
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size524 KB
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