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________________ धवला पुस्तक 13 215 ध्याता का लक्षण ज्झाणिस्स लक्खणं से अज्जव - लहुअत्त - बुड्ढवुवएसा । उवएसाणासुत्तं णिस्सग्गगदाओ रुचियो से ।।13।। जिसकी उपदेश, जिनाज्ञा और जिनसूत्र के अनुसार आर्जव, लघुता और वृद्धत्व गुण से युक्त स्वभावगत रुचि होती है, वह ध्यान करने वाले का लक्षण है।13।। जच्चिय देहावस्था जया ण ज्झाणावरोहिणी होइ । ज्झाज्जो तदवत्थोट्ठियो णिसण्णो णिवण्णो वा ।।14।। जैसे भी देह की अवस्था जिस समय ध्यान में बाधक नहीं होती उस अवस्था में रहते हुए खड़ा होकर या बैठकर कायोत्सर्गपूर्वक ध्यान करे।।14।। सव्वासु वट्टमाणा मुणओ जं देस-काल- चेट्ठासु । वरके वलादिलाहं पत्ता बहुसो खवियपावा ।।15।। सब देश, सब काल और सब अवस्थाओं में विद्यमान मुनि अनेकविध पापों का क्षय करके उत्तम केवलज्ञान आदि को प्राप्त हुए ।।15।। तो जत्थ समाहाणं होज्ज मणो वयण- कायजोगाणं । भूदोवघायरहिओ सो देसो ज्झायमाणस्स ।।16।। मनोयोग, वचनयोग और काययोग जहाँ समवधान हो और जो प्राणियों के उपघात से (अर्थात् एकाग्रता) रहित हो वही देश ध्यान करने वाले के लिये उचित है।।16।। ध्यान हेतु स्थान णिच्चं विय–जुवइ पसू - णवुंसय - कुसीलवज्जियं जइणो । ट्ठाण वियणं भणियं विसेसदो ज्झाणकालम्मि ।।17।।
SR No.009235
Book TitleDhavala Uddharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year2016
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size524 KB
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