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________________ धवला उद्धरण 200 विरलित इच्छा राशि को दूना करके परस्पर गुणा करने पर जो प्राप्त हो उसकी दो प्रतिराशियां करके उनमें से एक राशि को चय युक्त आदि से गुणित करके उसमें से चयगुणित इच्छा को चय युक्त आदि से संयुक्त करके घटा देना चाहिये। ऐसा करने पर जो शेष रहे उसमें प्रथम हार के अर्ध भाग से गुणित प्रतिराशि का भाग देना चाहिये।।25-26।। प्रक्षेपकसंक्षेपेण विभक्ते यद्धन समुपलब्ध। प्रक्षेपास्तेन गुणाः प्रक्षेपसमानि खण्डानि।।27।। किसी एक राशि के विवक्षित राशि प्रमाण खण्ड करने के लिये प्रक्षेपों को जोडकर उसका उक्त राशि में भाग देने पर जो लब्ध हो उससे प्रक्षेपों को गुणित करने पर प्रक्षेपों के समान खण्ड होते हैं।।27।। आउअभागो थोवो णामा-गोदे समो तदो अहियो। आवरणमंतराए भागो अहिओ दु मोहे वि।।28।। सव्वुवरि वेयणीए भागो अहिओ दु कारणं किंतु। पयडिविसेसो कारण णो अण्णं तदणुवलंभादो।।29॥ आयु का भाग स्तोक है। उससे नाम और गोत्र का भाग विशेष अधिक होता हुआ परस्पर समान है। उससे ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय का भाग अधिक है। उससे अधिक भाग मोहनीय का है। वेदनीय का भाग सबसे अधिक है, किन्तु इसका कारण प्रकृति विशेष है, अन्य नहीं, क्योंकि वह पाया नहीं जाता।।28-29।।
SR No.009235
Book TitleDhavala Uddharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year2016
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size524 KB
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