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________________ धवला पुस्तक 9 189 अर्थात् शास्त्रादिकों का अलाभ, कलह, व्याधि और वियोग को करता है।।115॥ विनयपूर्वक श्रुत की विशेषता विणएण सुदमधीदं किह वि पमादेण होइ विस्सरिदं। तमुवट्ठादि परभवे केवलणाणं च आवहदि।।116।। विनय से पढ़ा गया श्रुत यदि किसी प्रकार भी प्रमाद से विस्मृत हो जाता है तो परभव में वह उपस्थित हो जाता है और केवलज्ञान को भी प्राप्त करता है।।116॥ | स्वरूप अल्पाक्षरमसंदिग्ध सारवद् गढनिर्णयम्। निदोषं हेतु मत्तत्यं सूत्रमिच्युते बुधः।।117।। जो थोड़े अक्षरों से संयुक्त हो, सन्देह से रहित हो, परमार्थ सहित हो, गूढ़ पदार्थों का निर्णय करने वाला हो, निर्दोष हो, युक्ति युक्त हो और यथार्थ हो उसे पण्डितजन सूत्र कहते हैं।।117।। अनुयोग के समानार्थक अणियोगो य नियोगो भास विहासा य वट्टिया चेव। एदे अणियोगस्स दु णामा एयट्ठया पंच।।118।। अनुयोग, नियोग, भाषा, विभाषा और वर्त्तिका, ये पाँच अनुयोग के समानार्थक नाम हैं।।118।। दृष्टान्त के भेद सूई मुद्दा पडिपो संभवदल-वट्टिया चेव। अणियो गणिरुत्तीए दिळंत हो ति पंचते।।119।।
SR No.009235
Book TitleDhavala Uddharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year2016
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size524 KB
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