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________________ 185 धवला पुस्तक 9 पर, , क्षेत्र की अशुद्धि होने पर, दूर से दुर्गन्ध आने पर अथवा अत्यन्त सड़ी गन्ध के आने पर, ठीक अर्थ समझ में न आने पर (?) अथवा अपने शरीर शुद्धि से रहित होने पर मोक्षसुख के चाहने वाले व्रती पुरुष को सिद्धान्त का अध्ययन नहीं करना चाहिये। 197-98॥ अशुद्ध भूमि के स्थान प्रमितिररत्निशतं स्यादुच्चारविमोक्षणक्षिते रारात् । तनुसलिलमोक्षणेऽपि च पंचाशदरत्निरेवातः । । 99।। मानुषशरीरले शावयवस्याप्यत्र दण्डपं चाशत्। संशोध्या तिश्चां तदर्द्धमात्रैव भूमिः स्यात् ।।100।। मल छोड़ने की भूमि से सौ अरत्नि प्रमाण दूर, तनुसलिल अर्थात् मूत्र के छोड़ने में भी इस भूमि से पचास अरत्नि दूर, मनुष्य शरीर के लेशमात्र अवयव के स्थान से पचास धनुष तथा तिर्यंचों के शरीर सम्बन्धी अवयव के स्थान से उससे आधी मात्र अर्थात् पच्चीस धनुष प्रमाण भूमि को शुद्ध करना चाहिये।।99-100।। वा। व्यन्तरभेरीताडन- त्त्पूजासंकटे कर्षणे समृक्षण-समार्ज्जुनसमीपपचाण्डालबालेषु ।। 101।। अग्निजलरूधिरदीपे मांसास्थिप्रजनने तु जीवानां । क्षेत्रविशुद्धिर्न स्याथोदितं सर्वभावज्ञेः । । 1021 व्यन्तरों के द्वारा भेरीताड़न करने पर, उनकी पूजा का संकट होने पर, कर्षण के होने पर, चाण्डाल बालकों के समीप में झाड़ा-बुहारी करने पर, अग्नि, जल व रुधिर की तीव्रता होने पर तथा जीवों के मांस व हड्डियों के निकाले जाने पर क्षेत्र की विशुद्धि नहीं होती जैसा कि सर्वज्ञों ने कहा है ||101-102।।
SR No.009235
Book TitleDhavala Uddharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year2016
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size524 KB
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