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________________ धवला उद्धरण 172 पाँच अस्तिकाय, छह जीवनिकाय, पाँच महाव्रत, आठ प्रवचनमाता अर्थात् पाँच समिति और तीन गुप्ति तथा सहेतुक बन्ध और मोक्ष।।39।। धर्मतीर्थ का उद्भव वासस्स पढममासे पढमे पक्खम्मि सावणे बहुले। पाडिवदपुव्वदिवसे तिथुप्पत्ती दु अभिजिम्मि।।40।। वर्ष के प्रथम मास व प्रथम पक्ष में श्रावण कृष्ण प्रतिपदा के पूर्व दिन में अभिजित् नक्षत्र में तीर्थ की उत्पत्ति हुई।।40।। पंच य मासा पंच य वासा छच्चेव होंति वाससया। सगलकालेण य सहिया थावेयव्वो तदो रासी।।41।। पांच मास, पांच दिन और छह सौ वर्ष होते हैं। इसलिये शककाल से सहित राशि स्थापित करना चाहिये।।41।। गुत्ति-पयत्थ- भयाइं चोइसरयणाइ समइकताई। परिणिव्वुदे जिणिदे तो रज्जं सगणरिदस्स।।42।। वीर जिनेन्द्र के मुक्त होने के पश्चात् गुप्ति, पदार्थ, भय और चौदह रत्नों अर्थात् चौदह हजार सात सौ तैरानवै वर्षों के बीतने पर शक नरेन्द्र का राज्य हुआ।।42।। सत्तहस्सा णवसद पंचाणउदी सपंचमासा य। अइकंता वासाणं जइया तइया सगुप्पत्ती।।43।। जब सात हजार नौ सौ पंचानवै वर्ष और पांच मास बीत गये तब शक नरेन्द्र की उत्पत्ति हुई।।43।। तिविहा य आणुपुव्वी दसधा णामं च छव्विहं माणं। वत्तव्वदा य तिविहा विविहो अत्थाहियारो य।।44।। आनुपूर्वी तीन प्रकार, नाम दश प्रकार, प्रमाण छह प्रकार,
SR No.009235
Book TitleDhavala Uddharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year2016
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size524 KB
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