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________________ धवला उद्धरण 170 मास आठ दिन रहकर चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में त्रयोदशी की रात्रि में उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में उत्पन्न हुए।।28-29।। भगवान् का दीक्षा कल्याणक मणुवत्तणसुहमउलं देवकय सेविऊणं । अट्ठावीसं सत्त य मासे दिवसे य बारसयं । 1301 आहिणिबोहियबुद्धो छण य मग्गसीबहुले दु । दसमीए णिक्खंतो सुरमहिदो णिक्खमणपुज्जो ॥। 31 ।। वर्धमान स्वामी अट्ठाईस वर्ष सात मास और बारह दिन देवकृत श्रेष्ठ मानुषिक सुख का सेवन करके आभिनिबोधिक ज्ञान से प्रबुद्ध होते हुए षष्ठोपवास के साथ मगसिर कृष्णा दशमी के दिन गृहत्याग करके सुरकृत महिमा का अनुभव कर तप कल्याण द्वारा पूज्य हुए। 30-31।। भगवान् का ज्ञान कल्याणक गमइय छदुमत्थत्तं बारसवासाथ पंच मासे य पण्णरसाणि दिणाणि य तिरयणसुद्धो महावीरो ।। 32।। उजुकूलणदीतीरे जंभियगामे बहिं सिलावट्टे । छट्ठे णादावें तो अवरण्हे पायछायाए । ।33।। वइसाहजो ण्णपक्खे दसमीए खवगसेडिमारूढो । हंतूण घाइकम्मं केवलणाण समावण्णो ।।34।। रत्नत्रय से विशुद्ध महावीर भगवान् बारह वर्ष, पाँच मास और पन्द्रह दिन छद्मस्थ अवस्था में बिताकर ऋजुकूला नदी के तीर पर जृम्भिका ग्राम में बाहर शिलापट्ट पर षष्ठोपवास के साथ आतापन योग युक्त होते हुए अपराह्न काल में पादपरिमित छाया के होने पर बैशाख शुक्ल पक्ष की दशमी के दिन क्षपक श्रेणी पर आरूढ़ होकर घातिया कर्मों को नष्ट कर केवलज्ञान को प्राप्त हुए । 132-341
SR No.009235
Book TitleDhavala Uddharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year2016
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size524 KB
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