SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 160
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धवला पुस्तक 8 155 बन्ध और मोक्ष का स्वरूप बंधेण य संजोगो पोग्गलदव्वेण होइ जीवस्स। बंधो पुण विण्णेओ बंधविओओ पमोक्खो दु।।1।। जीव का पुद्गल द्रव्य से जो बन्ध रूप से संयोग होता है, उसे बन्ध जानना चाहिये और बन्ध के वियोग को मोक्ष जानना चाहिये।।1।। बंधो बंधविही पुण सामित्तद्धाण पच्चयविही य। एदे पंच णिओगा मग्गणठाणेसु मगेज्जा।।2।। बन्ध, बन्धविधि, बन्धस्वामित्व, अध्वान अर्थात् बन्ध सीमा और प्रत्ययविधि, ये पाँच नियोग अनुयोग मार्गणास्थानों में खोजने योग्य हैं।।।2।। बंधोदय पुव्वं वा समं व णियएण कस्स व परेण। अण्णदरस्सुदएण व सांतरविगयंतरं का च।।3।। पच्चय-सामित्तविही संजुत्तद्धाणएण तह चेय। सामित्तं णेयव्वं पयडीणं ठाणमासेज्ज।।4।। बन्ध पूर्व में है, उदय पूर्व में हैं, या दोनों साथ हैं, किस कर्म का बन्ध निज के उदय के साथ होता है, किसका पर के उदय के साथ और किसका अन्यन्तर के उदय के साथ, कौन प्रकृति सान्तरबन्ध वाली है और कौन निरन्तरबन्ध वाली है, प्रत्ययविधि, स्वामित्वविधि तथा गतिसंयुक्त बन्धाध्वान के साथ प्रकृतियों के स्थान का आश्रयकर स्वामित्व जानना चाहिये।।3-4।।
SR No.009235
Book TitleDhavala Uddharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year2016
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size524 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy