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________________ धवला पुस्तक 6 137 गुणसेडिअसंखेज्जा पदेसअग्गेण संकमो उदओ। से काले से भज्जो बंधो पदेसग्गो।।26।। संक्रमण (गणसंक्रमण) और उदय उत्तरोत्तर अनन्तर काल में अपने-अपने प्रदेशाग्र की अपेक्षा असंख्यातगुणित श्रेणी रूप होते हैं। किन्तु प्रदेशाग्र की अपेक्षा बन्ध भजनीय है, अर्थात् वह योगों की हानि, वृद्धि व अवस्थान के अनुसार हानि, वृद्धि या अवस्थान रूप होता है।।।26।। उदओ च अणंतगुणो संपहिबंधेण होदि अणुभागे। से कालो उदयादो संपदिबंधो अणंतगुणो।।27।। अनुभागविषयक साम्प्रतिक बन्ध से साम्प्रतिक अनुभागोदय अनन्तगुणा होता है। इससे अनन्तर काल में होने वाले उदय से साम्प्रतिक बन्ध अनन्तगुणा होता था।।27।। बंधेण होदि उदओ अहिओ उदएण संकमो अहिओ। गुणसेडि अणंतगुणा बोद्धव्वा होदि अणुभागे।।28।। बन्ध से अधिक उदय और उदय से अधिक संक्रमण होता है। इस प्रकार अनुभाग के विषय में अनन्तगुणित गुणश्रेणी जानना चाहिये।।28।। गुणसेडि अणंतगुणेणूणाए वेदगो दु अणुभागे। गणणादियंतसेडी पदेसअग्गेण बोद्धव्वा।।29।। (अप्रशस्त प्रकृतियों के) अनुभाग का वेदक अनन्तगुणित हीन गुणश्रेणी रूप से होता है तथा प्रदेशाग्र की अपेक्षा गणनातिक्रान्त अर्थात् असंख्यातगुणी श्रेणी रूप से वेदक होता है, ऐसा जानना चाहिये।।29।। बंधोदएहि णियमा अणुभागो होदि शंतगुणहीणो। से काले से काले भज्जो पुण संकमो होदि।।30।। नियमतः बन्ध वह उदय से अनुभाग अर्थात् अनुभाग बन्ध और
SR No.009235
Book TitleDhavala Uddharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year2016
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size524 KB
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