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________________ धवला पुस्तक 6 127 भाव वस्तु के परिणाम को कहते हैं। दो बार प्रतिषेध उसी वस्तु की एकता का ज्ञान कराता है। 'नो' यह शब्द स्व और पर के योग से विवक्षित वस्तु के एकदेश का प्रतिषेधक और विधायक होता है || 9 || णलया बाहू अ तहा णियंब पुट्ठी उरो य सीसं च। अट्ठेव दु अंगाई देहण्णाईं उवंगाई ।।10।। शरीर में दो पैर, दो हाथ, नितम्ब (कमर के पीछे का भाग), पीठ, हृदय और मस्तक ये आठ अंग होते हैं। इनके सिवाय अन्य (नाक, कान, आँख इत्यादि) उपांग होते हैं।।10।। सप्त धातुओं की प्रक्रिया रसाद् रक्तं ततो मांस मांसान्मेदः प्रवर्तते । मेदसोस्थि ततो मज्जा मज्झः शुक्रं ततः प्रजा ।।11।। रस से रक्त बनता है, रक्त से मांस उत्पन्न होता है, मांस से मेदा पैदा होती है। मेदा से हड्डी बनती है, हड्डी से मज्जा पैदा होती है, मज्जा से शुक्र उत्पन्न होता है और शुक्र से प्रजा (सन्तान) उत्पन्न होती है।।11।। पंच लब्धि खयउवसमो विसोही देसण पाओग्ग करणलद्धी अ चत्तारि वि सामण्णा करणं पुण होइ सम्मत्ते ।।।। क्षयोपशम, विशुद्धि, देशना, प्रायोग्य और करण, ये पाँच लब्धियाँ होती हैं। उनमें से प्रारंभ की चार तो सामान्य हैं, अर्थात् भव्य और अभव्य जीव, इन दोनों के होती हैं, किन्तु पांचवी करण लब्धि सम्यक्त्व उत्पन्न होने के समय भव्य जीव के ही होती है।।।।
SR No.009235
Book TitleDhavala Uddharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year2016
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size524 KB
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