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________________ धवला उद्धरण 120 नाम और स्थापना निक्षेप की विशेषता अप्पिदआदरभावो अणुग्गहभावो य धम्मभावो य। ठवणार कीरते ण होंति णामम्मि एए दु । । 1 । । विवक्षित वस्तु के प्रति आदरभाव, अनुग्रहभाव और धर्मभाव स्थापना में किया जाता है, किन्तु ये बातें नामनिक्षेप में नहीं होती हैं।।1।। णामिणि धम्मुवयारो णामं ट्ठवणा जस्स तं ठविदं । तद्धम्मे ण वि जाणसु सुणाम-ठवणाणमविसेसं ।। 2 ।। नाम में धर्म का उपचार करना नाम निक्षेप है और जहाँ उस धर्म की स्थापना की जाती है, वह स्थापना निक्षेप है। इस प्रकार उस धर्म के विषय में नाम और स्थापना की अविशेषता अर्थात् एकता को मत जानो।।2।। गुणश्रेणी निर्ज सम्मत्तप्पत्ती ए सावयविरदे अनंतकम्मंसे । दंसणमोहक्खवए कसायउवसामए य उवसंते ।।3।। खवर य खीणमोहे जिणे य णियमा भवे असंखेज्जा । तव्विवरीदो कालो संखेज्जगुणाए सेडीए ।। 4 ।। सम्यक्त्व की उत्पत्ति में, श्रावक में, विरत में, अनन्तानुबन्धी कषाय के विसंयोजन में, दर्शनमोह के क्षपण में, कषायों के उपशमकों में, उपशान्तकषाय में, क्षीणमोह में और जिनभगवान् में नियम से असंख्यात गुणी निर्जरा होती है, किन्तु उक्त गुणश्रेणी निर्जरा में असंख्यात गुण श्रेणी
SR No.009235
Book TitleDhavala Uddharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year2016
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size524 KB
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