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________________ धवला उद्धरण 106 गुणकार शलाका सोलह सोलसहिं गुणो रूवूणोवहिसलागसंखा त्ति। दुगुणम्हि तम्हि सोहे चउक्कपहदं चउक्कं तु।।6।। विवक्षित समुद्र की क्रम शलाका की संख्या में एक कम करके शेष संख्या प्रमाण देवराशि सोलह, सोलह को परस्पर गुणित कर दो जो राशि उपलब्ध हो, उसे दूना कर दे और पूर्वोक्त विरलन, राशि प्रमाण चार-चार को परस्पर गुणाकर लब्ध को उस द्विगुणित राशि में से घटा देने पर विवक्षित समुद्र की गुणकार शलाकाएं आ जाती हैं।।6।। अपनयन राशि इट्ठसलागाखुत्तो चत्तारि परोप्परेण संगुणिय। पंचगुणे खित्तव्वा एगादिचदुगुणा संकलणा।।7।। इष्ट शलाका राशि का जो प्रमाण हो उतने बार चार को रखकर परस्पर में गुणा करें, पुनः उसे पाँच से गुणा करे और फिर एक आदि चतुर्गुण संकलन राशि को प्रक्षेप करना चाहिए। ऐसा करने पर अपनयन राशि का प्रमाण आ जाता है।।7।। विक्खंभवग्गदसगुणकरणी वट्टस्स परिरओ होदि। विक्खभचउब्भागो परिरयगुणिदो हवे गणिदं।।8।। विष्कम्भ का वर्गकर उसे दश से गुणा करके उसका वर्गमूल निकालें, वही वृत्त अर्थात् गोलाकृति क्षेत्र की परिधि का प्रमाण हो जाता है। पुनः विष्कम्भ के चतुर्भाग से परिधि को गुणा करने पर क्षेत्रफल होता है।।8।। व्यासं षोडशगुणितं षोडशसहितं त्रिरूपरूपहतं। व्यासत्रिगुणितसहितं सूक्ष्मादपि तद्भवेत्सूक्ष्मम्।।9।। व्यास को सोलह से गुणा करें, पुनः सोलह जोड़ें, पुनः तीन, एक
SR No.009235
Book TitleDhavala Uddharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year2016
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size524 KB
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