SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 108
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धवला पुस्तक4 103 महामत्स्य नामक पंचेन्द्रिय जीव एक हजार योजन की अवगाहना वाला होता है।।12।। शंख का क्षेत्रफल व्यासं तावत्कृत्वा वदनदलोनं मुखार्धवर्गयुतम्। द्विगुणं चतुर्विभक्तं सनाभिकेऽस्मिन् गणितमाहुः।।13।। व्यास को उतनी ही बार करके अर्थात् व्यास का जितना प्रमाण है उतनी बार व्यास को रखकर जोड़ने पर जो लब्ध आवे, उसमें से मुख के आधे प्रमाण को घटाकर, मुख के आधे प्रमाण के वर्ग को जोड़ दें। इस प्रकार जो संख्या आवे, उसे द्विगुणित करके पश्चात् चार का भाग दें। इस प्रकार जो लब्ध आवें, उसे शंख का क्षेत्रफल कहते हैं।।13।। व्यासं षोडशगुणितं षोडशसहितं त्रिरूपरूपैर्भक्तम्। व्यास-त्रिगुणितसहितं सूक्ष्मादपि तद्भवेत्सूक्ष्मम्।।14।। व्यास को सोलह से गुणा करे, पुनः सोलह जोड़े, पुनः तीन, एक और एक अर्थात् एक सौ तेरह का भाग देवे और व्यास का तिगुना जोड़ देवे, तो सूक्ष्म से भी सूक्ष्म परिधि का प्रमाण होता है।।14।। मूलं मज्झेण गुणं मुहसहिदद्धमुस्सेधकदिगुणिदं। घणगणिदं जाणेज्जो मुदिंगसंठाणखत्तम्हि।।15।। मूल के प्रमाण को मध्य के प्रमाण से गुणित करके जो लब्ध आवे, उसमें मुख का प्रमाण जोड़कर आधा करो। पुनः इसे उत्सेध के वर्ग से गुणित करो। यह मृदंगाकार क्षेत्र में घनफल लाने का गणित जानना चाहिए।।15।। मुह-मुहतलसमासअद्धं उस्सेधगुणं गुणं च वेहेण। घणगणिदं जाणेज्जा वेत्तासणसंठिए खेत्ते।।16।। मुख के प्रमाण और तलभाग के प्रमाण को जोड़कर आधा करें।
SR No.009235
Book TitleDhavala Uddharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year2016
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size524 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy