SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 118
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११२] [प्रतिक्रमण-आवश्यक केवळज्ञान ओवो क्रम आपने ज प्राप्त थयो हतो, परंतु आपथी अन्य कोइ देवने मे क्रम प्राप्त थयो नथी. तेथी आप ज शुद्ध छो अने आपना चरणोनी सेवा सज्जन पुरुषोओ करवी योग्य छे. भावार्थ:-हे भगवन् ! आपे ज संसारथी मुक्त थवा अर्थे समस्त परिग्रहनो त्याग कर्यो छे तथा रागभावने छोडयो छे अने समताने धारण करी छे तथा अनंत विज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत सुख अने अनंत वीर्य आपने ज प्रगट थयां छे तेथी आप ज शुद्ध अने सज्जनोनी सेवाने पात्र छो. . सेवानो दृढ निश्चय अने प्रभु-सेवार्नु माहात्म्य :____३. अर्थ:-हे त्रैलोक्यपते ! आपनी सेवामां जो मारो दृढ निश्चय छे तो मने अत्यंत बळवान संसाररूप वैरीने जीतवो कांइ मुश्केल नथी. केमके जे मनुष्यने जळवृष्टिथी हर्षजनक उत्तम फुवारासहित घर प्राप्त थाय तो ते पुरुषने जेठ मासनो प्रखर मध्याह्न -ताप शुं करी शके तेम छे ? अर्थात् कांइ करी शके नहि. भावार्थ:-हे त्रण लोकना इश! जेम शीतळ जळ वडे ऊडता फुवाराथी सुशोभित उत्तम घरमां बेठेला पुरुषने जेठ मासनी बपोरनी अत्यंत गरमी पण काइ करी शके नहि तेम हुं निश्चयपूर्वक आपनी सेवामां दृढपणे स्थित छु तो मने बळवान संसाररूप वैरी पण जराय त्रास आपी शके नहि. . भेदज्ञान द्वारा साधकदशा : ४. अर्थ:-आ पदार्थ साररूप छे अने आ पदार्थ असाररूप छे ओ प्रकारे सारासारनी परीक्षामा अकचित्त थई, जे कोइ बुद्धिमान मनुष्य त्रणे लोकना समस्त पदार्थोनो, अबाधित गंभीर दृष्टिथी विचार करे छे तो ते पुरुषनी दृष्टिमां हे भगवान! आप ज ओक सारभूत
SR No.009232
Book TitlePratikraman Aalochana Samayik Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Mumukshu Mahila Mandal
PublisherJain Mumukshu Mahila Mandal
Publication Year2002
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size52 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy