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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उदय रत्न कहे सांभलोजी, मूको मायानी बुद्ध; मुक्तिपुरी जावा तणोजी, ए मारग छे शुद्ध रे. प्राणी.६ माया सन्झाय जगमां माया छे धूतारी, माया अनन्त दुःख देनारी; माया सारी माया प्यारी, माया कामणगारी; अंधी छे मायाथी दुनिया, माया विषनी क्यारी. जगमां. १ कुमतिनी जननी छे माया, प्रगटे चोरी जारी; मायानां विष वृक्षो ज्यां त्यां, माया शक्ति भारी. जगमां. २ माया कामण माया टुंमण, माया नाच नचावे; मायाना अंधारा मांहिं, फरतां पार न आवे. जगमां. ३ माया दरियो कोईक तरीयो, माया युद्ध करावे; मायामां मारूं जे माने, ते दुर्गतिमां जावे. जगमां. ४ मायानी पूजारी दुनिया, ज्यां त्यां नरने नारी; बुद्धि सागर साचा सन्तो, सुरता अन्तर धारी. जगमां. ५ वैराग्य सन्झाय ऊंचां ते मंदिर मालीयां, सोड वालीने सूतो; काढो काढोरे एने सहु कहे, जाणे जन्म्यो ज न्होतो. १ एक रे दिवस एवो आवशे, मन सबलोजी साले; मंत्री मल्या सर्वे कारमा, तेनुं कांइ नवी चाले. एक.२ 30 For Private And Personal Use Only
SR No.008932
Book TitleSadhubhai Samaya Sudharas Pije
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmaratnasagar
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2006
Total Pages196
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Discourse
File Size5 MB
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